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किसी कारखाने को बंद होने पर बेरोजगार हुए कर्मचारियों को नौकरी देने की जिम्मेदारी किसकी? जैसा स्कूटर इन्डिया व फोर्ड मोटर के मामले में हुआ!

किसी उपक्रम को बंद करने की प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।

उपक्रम को बंद करने की प्रक्रिया-

धारा 25 (O) में उपबंधित प्रक्रिया का पालन उपक्रम के बंद करने के लिए नियोजक हेतु आवश्यक है। इसके अनुसार-

1- नियोजक, जो औद्योगिक उपक्रम को बंद करना चाहता है आशयित बंदी प्रभावी होने वाली तिथि से कम से कम 90 दिनों पूर्व बंदी के लिए अनुमति हेतु आशयित बंदी के कारणों का अभिकथन करते समुचित सरकार के पास आवेदन बंदी के लिए अनुमति प्राप्त करने के लिए देगा और विस्तृत विहित रीति से कर्मकारों के प्रतिनिधियों को भी ऐसे आवेदन की एक प्रतिलिपि प्रदान की जाएगी। परंतु इस उप धारा की कोई बात भवन, पुल, सड़कें, नहरे, बांध या अन्य निर्माण कार्य के लिए स्थापित उपक्रम पर लागू नहीं होगी।

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मेसर्स उड़ीसा टेक्सटाइल स्टील लिमिटेड बनाम उड़ीसा राज्य तथा उत्तर प्रदेश राज्य तथा इंडियन ऑक्सीजन लिमिटेड के निर्णय अनुसार जब समुचित सरकार उपक्रम बंद करने के लिए अनुमति देगी या इंकार करेगी तो वह लिखित होगी और उसमें कारणों का भी उल्लेख रहेगा। धारा 25 (O) का प्रावधान संविधानिक तथा वैध है। 

जब भी किसी उपक्रम को बंद करना है तो साल के अंत में क्लोज करने के लिए आवेदन देना चाहिए। सरकार का आदेश रिव्यू का विषय होगा जब नियोजक प्रतिकर देता है। तो 3 माह पूर्व नोटिस देना आवश्यक नहीं होगा। यह सामाजिक हित में है कि कुछ अवधि के लिए कारोबार बंद करने पर प्रतिबंध लगाया जाए।

2- जहां अनुमति के लिए आवेदन किया जाता है वहां समुचित सरकार ऐसी जांच करके, जो वह उचित समझें, और नियोजक कर्मकारों  तथा बंदी में हितबद्द अन्य लोगों को सुनवाई का उचित अवसर देकर, नियोजक द्वारा प्रस्तुत कारणों की सत्यता सामान्य जनहित और अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए आदेश द्वारा और रिकॉर्ड किए जाने वाले कारणों से अनुमति प्रदत्त या इंकार करेगी और उस आदेश की प्रतिलिपि नियोजक तथा कर्मकारों के पास भेजी जाएगी।

3- यदि अनुमति के लिए आवेदन देने की तिथि से 60 दिनों के अंदर समुचित सरकार अनुमति देने या इंकार करने की सूचना नहीं देती तो 60 दिनों की अवधि के बाद यह मान लिया जाएगा कि प्रार्थित अनुमति प्रदत्त कर दी जाए दी गई।

4- अनुमति देने या इंकार करने वाला समुचित सरकार का आदेश उपधारा (5) के अधीन सभी पक्षों के लिए अंतिम तथा बंधनकारी होगा और ऐसे आदेश की तिथि से 1 साल तक प्रभावी रहेगा।

5-समुचित सरकार स्वप्रेरणा पर या किसी नियोजक अथवा कर्मकार द्वारा आवेदन दिए जाने पर अनुमति देने या इंकार करने वाले आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगी या वह मामले को न्याय निर्णयन के लिए अधिकरण को भेज सकेगी। अधिकरण निर्देश की तिथि से 30 दिनों की अवधि के भीतर अपना विनिश्चय प्रदान करेगा।

6- जहां निर्दिष्ट अवधि में उपक्रम बंद करने की अनुमति हेतु आवेदन नहीं दिया जाता, या जहां बंदी के लिए अनुमति स्वीकार कर ली गई है, वहा उपक्रम बंद करने की तिथि से बंदी अवैध मानी जाएगी और कर्मकार उस समय प्रव्रत किसी विधि के अधीन सभी लाभों को पाने का हकदार होगा मानो उपक्रम बंद ही नहीं किया गया था।

7- इस धारा के प्रावधानों में अंतर्विष्ट किसी बात के लिए होते हुए भी समुचित सरकार यदि संतुष्ट है कि उपक्रम में दुर्घटना, नियोजक की मृत्यु या अन्य बातों जैसे परिस्थितियों में वैसा करना आवश्यक है, आदेश द्वारा निर्देश दे सकती है की उपधारा (1) के प्रावधान आदेश में निर्दिष्ट अवधि के लिए लागू नहीं होंगे।

8- जहां उपक्रम के बंद करने की अनुमति दे दी गई है या उपधारा (2) में अनुमति को प्रदत्त मान लिया गया है तो अनुमति के लिए आवेदन देने के पूर्व नियोजित कर्मकार 15 दिनों के औसत वेतन के बराबर प्रतिकर पाने के हकदार होंगे।

यह धारा संविधान के अनुच्छेद 19(1) (जी) के अंतर्गत प्रदत्त मूलभूत अधिकार का उल्लंघन नहीं करती इसलिए यह संविधान से बाहर नहीं है क्योंकि कारोबार को बंद करना कारोबार चलाने के अधिकार का अभिन्न अंग है। यदि बंद करने का आवेदन अस्वीकार कर दिया जाता है तो 1 साल बाद सरकार पुनर्विलोकन पत्र पर पुनः कोई आदेश नही दे सकेगी।

उपक्रम बंदी के लिए शस्ति 

धारा 25 (आर) के अनुसार नियोजक जो बिना सरकार की पूर्वानुमति लिए उपक्रम बंद करता है, 6 महीने की सजा या ₹5000 जुर्माने या दोनों से दंडित किया जाएगा। कोई नियोजक जो अंडरटेकिंग को बंद करने की अनुमति न देने या उसे पुनः चलने के आदेश का पालन नहीं करेगा। उपक्रम बंद करने की इच्छा के 60 दिनों पूर्व नोटिस दिए बिना जो नियोजक उपक्रम बंद करेगा, 1 वर्ष तक की सजा या ₹5000 जुर्माना या दोनों से दंडनीय होगा, और दंड के बाद जितने दिन उल्लंघन होता रहेगा, प्रतिदिन ₹2000 की दर से जुर्माना देय होगा।

क्या कारोबार/ उपक्रम बंद करने का नियोजक का अधिकार है-

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जो व्यक्ति कारोबार चलाने के अपने मूल अधिकार का प्रयोग कर रहा है, वह अपना कारोबार बंद करने का अधिकार भी रखता है। कारोबार चलाने के अधिकार में कारोबार न चलाने, उसे बंद करने का अधिकार सम्मिलित है।

एक्सेल बीयर बनाम भारत संघ के वाद में धारा 25 (O) और धारा 25 (R) के अंतर्गत कारोबार बंद करने की सरकार से अर्जीदार ने अनुमति मांगी क्योंकि उसका कारोबार श्रमिक विवाद के कारण घाटे में चल रहा था। सरकार ने अनुमति अनुमति देने से इंकार कर दिया था। यह निर्णय हुआ कि निरंतर घाटे में रहने वाले नियोजक से यह अपेक्षा करना अनुचित और अयुक्तियुक्त होगा कि वह काम बंद न करें।

कारोबार न करने का अधिकार आत्यंतिक है। उसे कारोबार चलाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। लेकिन लोकहित में जैसे बेरोजगारी रोकने के लिए अनुचित, न्याय, विरुद्ध या दुर्भावपूर्ण बंदी रोकने के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं। लेकिन जहां निरंतर घाटा उठाने के कारण कारोबार चलाना और न्यूनतम मजदूरी श्रमिकों को देना असंभव हो जाए यह सद्भावपूर्वक कारोबार बंदी है।

कारोबार बंद करने से कर्मचारियों के उपजीविका चलाने के अनुच्छेद 19(1) के अधीन प्रत्याभूत मूल अधिकार का अतिलंघन नहीं होता है क्योंकि यदि उनकी छंटनी की जाएगी तो उनको अनुतोष मिलेगा और वे कोई अन्य नियोजन प्राप्त कर सकते हैं।

उपक्रम बंदी पर प्रतिकर देय होगा- हाथी सिंह मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत संघ में निर्णित हुआ कि उद्योग को चलाना और बंद करना नियोजक का मूल अधिकार है। जनहित में राज्य उस पर प्रति कर देने का दायित्व अधिरोपित कर सकता है। प्रतिकर देना उद्योग बंदी की पूर्ववर्ती शर्त नहीं है। सेवामुक्ति के बाद भी नियोजक प्रतिकर दे सकता है। प्रतिकर न देने पर उद्योग बंदी की कार्यवाही को निरस्त नहीं किया जा सकता।

पिपराइच शुगर मिल्स लिमिटेड बनाम उसकी मजदूरी यूनियन के बाद में छटनी और उद्योग बंदी में भेद करते हुए कहा गया कि छटनी में उद्योग लगातार चलता रहता है और कतिपय कर्मकारों की अधिकता के कारण कर्मकारों को सेवा मुक्ति की जाती है। जबकि उद्योग बंदी में समस्त कर्मकारों को सेवा मुक्त कर दिया गया है। इसलिए वे प्रतिकार पाने के हकदार नहीं है।

निर्णय के कारण प्रतिकर से वंचित होने को दृष्टि में रखते हुए सरकार ने 1956 में संशोधन किया कि ताकि उद्योग बंदी के बाद कर्मकारों को सामाजिक सुरक्षा दी जा सके। इसलिए उद्योग के हस्तांतरण, उद्योग बंदी, छटनी, जबरी छुट्टी के परिणाम से उत्पन्न आर्थिक संकट से निपटने के लिए नियोजक पर सामाजिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर श्रमिकों की पूर्व सेवाओं के आधार पर प्रतिकर देने का आर्थिक भार अधिरोपित किया गया है। 3 महीने के औसतन वेतन के बराबर उद्योग बंदी प्रति कर दे होगा।

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