अंतर धार्मिक विवाह करने के लिए किसकी अनुमति ज़रूरी है? क्या कोर्ट मैरिज रजिस्ट्रार विवाह पंजीकरण करने से इनकार कर सकता है? जानिए प्राविधान

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार उन व्यक्तियों का वर्णन कीजिए जो पैतृक संपत्ति पाने के अयोग्य हैं?
धारा 24 के अंतर्गत इस निर्योग्यता के विषय में उल्लेख किया गया है। यह धारा उपबंधित करती है-
"जो कोई दायद पूर्व मृत पुत्र की विधवा पूर्व मृत पुत्र के पुत्र की विधवा या भाई की विधवा के रूप में निर्वसीय से नातेदारी रखती है? यदि उत्तराधिकार के सूत्रपात होने की तिथि में पुन: विवाह कर लेती है। तो वह निर्वसीयत की संपत्ति ऐसी विधवा के रूप में उत्तराधिकार प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी।" इस धारा से स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति की विधवा पुनर्विवाह (Remarriage) कर लेने के पश्चात उसकी विधवा नहीं रह जाती और उस व्यक्ति की विधवा के रूप में निर्वसीयत से उनका संबंध समाप्त हो जाता है इसलिए वह निर्वसीयत में से दाय प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं रह जाती है।
इस व्यवस्था का आधार यह की पत्नी पति की अर्धांगिनी की हैसियत से संपत्ति की अधिकारिणी होती है। ज्यों ही वह पुनर्विवाह कर लेती है वह पति की अधिकारिणी नहीं रह जाती है। और इस कारण वह अपने पति की संपत्ति को दाय में पान से वंचित रह जाती है।
यह निर्हता पुनर्विवाह से आती है, अस्तित्व से नहीं। इसलिए यदि उपयुक्त दायद पुनर्विवाह नहीं करती। बल्कि केवल अस्तित्व का आचरण करती है तो वह दाय से वंचित नहीं होगी परन्तु यदि वह दाय प्राप्त करने के पश्चात पुनर्विवाह करती है तथा जो संपत्ति उनमें निहित हो चुकी है वह अनिहित नहीं हो सकती।
धारा 25 हत्यारों को उस व्यक्ति की संपत्ति में दाय प्राप्त करने के निर्योग्य बना देती है जिसकी हत्या की गई है। धारा 25 उपबंध करती है-
"जो व्यक्ति हत्या करता है या हत्या करने में दुष्प्रेरणा करता है, वह मृत व्यक्ति की संपत्ति को जिसके उत्तराधिकार को अग्रसर करने के लिए उसने हत्या की थी या हत्या करने में अभिप्रेरणा किया था, दाय प्राप्त करने के निर्योग्य होगा।" इस प्रकार इस धारा के अंतर्गत दो प्रकार के हत्यारे संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं कर सकते हैं प्रथम यदि किसी उत्तराधिकारी ने स्वयं हत्या की है या हत्या का दुष्प्रेरण किया है या उत्तराधिकार को अग्रसर करने के लिए उसने किसी अन्य व्यक्ति की हत्या की है, हत्या का दुष्प्रेरण किया है।
पुरानी हिंदू विधि में भी यही नियम था। किसी व्यक्ति का हत्यारा मृत व्यक्ति से दाय प्राप्त करने का हकदार नहीं होता था। यह नियम लोकनीति पर आधारित है। यह नियम इसलिए उपबंधित किया है कि यदि किसी व्यक्ति का हत्यारा उससे दाय प्राप्त करने में समर्थ रखा जाए तो यह संभावना हो सकती है कि दाय प्राप्त करने की अति उत्सुक व्यक्ति उसकी हत्या कर दे अथवा किसी व्यक्ति को दुष्प्रेरित करके उसकी हत्या करा दे।
यह ध्यान देने योग्य है कि संपत्ति को दाय द्वारा प्राप्त करने के अधिकार से केवल हत्यारा ही या उसका सहायक वंचित होता है अन्य व्यक्ति नहीं। उदाहरण स्वरूप यदि पुत्र ने पिता की हत्या की है तो हत्यारे के पुत्र या पुत्रियों के उत्तराधिकारिक अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
क्या है धारा 26 में प्रावधान?
इस धारा के अंतर्गत धर्म परिवर्तन व्यक्ति के वंशजों को उत्तराधिकार से वंचित किया गया है। परंतु शर्त यह है कि ऐसे वंशज को दाय पाने के समय हिंदू नहीं होना चाहिए। जिस व्यक्ति ने धर्म परिवर्तन किया है वह स्वयं दाय से वंचित नहीं होता है बल्कि उस की संताने तथा संतानों के वंशज ही दाय प्राप्त करने से वंचित होते हैं। इस स्थिति को समझने के लिए कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं-
1- अ अपने तीन पुत्रों क, ख, ग को छोड़कर मर जाता है। अ की मृत्यु के पूर्व क ईसाई धर्म ग्रहण कर लेता है। उत्तराधिकार खुलने पर अ हिंदू होने पर भी वह अपने भाइयों के साथ उत्तराधिकार में भाग लेना और एक तिहाई संपत्ति पाएगा।
2- अ, एक पुत्र, ख, तथा तीन प्रपौत्र ब, स, द (पूर्व मृत पुत्र क के पुत्र) को छोड़कर 1964 में मर गया। क, अ की मृत्यु के पूर्व 1965 में मुसलमान हो गया था और उसके तीनों पुत्रों का जन्म उसके मुसलमान होने के पश्चात हुआ था। यहां पर समस्त संपत्ति का हकदार ख होगा। मृतक पुत्र क के पुत्र ब, स, द, सपरिवर्तित पुत्र की संतान होने के कारण उत्तराधिकारी नहीं हो सकते है।
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