गर्भपात का कानून
गर्भवती स्त्री कानूनी तौर पर गर्भपात केवल निम्नलिखित स्थितियों में ही करवा सकती है-
- जब गर्भ की वजह से महिला की जान को खतरा हो।
- महिला के शारिरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
- गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।
- बच्चा गंभीर रूप से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।
- महिला या पुरुष द्वारा अपनाया गया कोई भी परिवार नियोजन का साधन असफल रहा हो।
यदि इनमें से कोई भी स्थिति मौजूद हो तो गर्भवती स्त्री एक डॉक्टर की सलाह से 12 हफ्तों तक गर्भपात करवा सकती है। 12 हफ्ते से ज्यादा तक 20 हफ्ते (5 महीने) से कम गर्भ को गिराने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह लेना जरूरी है। लेकिन 20 हफ्तों के बाद गर्भपात नहीं कराया जा सकता है।
क्या गर्भवती स्त्री से जबर्दस्ती गर्भपात करवाना अपराध है?
गर्भपात केवल सरकारी अस्पताल या निजी चिकित्सा केंद्र जहां पर फार्म B लगा हो, में सिर्फ रजिस्ट्रीकरण डॉक्टर द्वारा ही करवाया जा सकता है।
भारतीय दण्ड सहिंता (IPC) की धारा 313 के अनुसार स्त्री की सहमती के बिना गर्भपात करवाना या करना तो दोनों ही प्रकार के व्यक्तियों को इस प्रकार से गर्भपात करवाने पर आजीवन कारावास या जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड सहिंता (IPC) की धारा 314 के अंतर्गत बताया गया है कि गर्भपात कारित करने के आशय से किए गए कार्यों द्वारा कारित मृत्यु में 10 वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है और यदि इस प्रकार का गर्भपात स्त्री की सहमति के बिना किया गया है तो कारावास आजीवन का होगा।
भारतीय दण्ड सहिंता (IPC) की धारा 315 के अंतर्गत बताया गया है कि शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने या जन्म के पश्चात उसकी मृत्यु कार्य करने के आशय से किया गया कार्य से संबंधित यदि कोई अपराध होता है तो इस प्रकार के कार्य करने वाले को 10 वर्ष की सजा या जुर्माना दोनों से दंडित किया जा सकता है।
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